शब्द / ओल्गा तकारचुक / अनिल जनविजय
काग़ज़ पर लिखे शब्द ...
मैं पहले से लिखी पंक्तियाँ काट दूँगी
शब्द ...
वास्तव में शून्य होते हैं, उन्हें चूमो मत, पुच-पुच ।
शब्द सम्पर्क में ...
भेजती हूँ वो, जो लिखती हूँ
शब्द ..
टिप्पणियाँ लिखती हूँ, पर उनमें होती है सच्चाई कम ।
उपन्यासों में शब्द ...
उनमें धोखा होता है .. सिर्फ़ धोखा ...
शब्द ..
उनमें नन्हीं किरचों में बदल चुके सपने होते हैं ।
गीतों में शब्द ।
ये सिर्फ़ काल्पनिक इबारतें होती हैं ।
शब्द ..
सिर्फ़ कड़वाहट । झूठ । लेकिन उन्हें कोई तो गाता है ।
दिल से निकले शब्द ...
भावनाओं से भरे होते हैं, बुद्धिहीन... झूठ नहीं बोलते,
शब्द ..
भावनाएँ तिरोहित होती हैं, शब्द भी मर जाते हैं ।
हवा में शब्द ...
हम उन्हें यूँ ही फेंकते हैं, वे अक्सर हमारे साथ होते हैं ।
शब्द...
नंगे पैर चलूँगी मैं उन पर ।
आँखों में शब्द ...
लिखे हुए हैं ऐसे, पहुँच जाते हैं सपनों में ।
शब्द ..
धूल से भरे हुए और भूले हुए अवशेष ।
मुलाकात में शब्द ...
सिर्फ़ सामान्य से कुछ वाक्य
शब्द ...
मुलाक़ात ख़त्म हुई, भूल गई ... याद आएँगे अब अगली मुलाक़ात में ।
प्रेम में शब्द ..
झूठ बोला जाता है क्यों इतनी बेशर्मी के साथ .. आख़िर
शब्द ..
प्रेम बीत जाता है और तुम -- तुम बौड़म बन जाते हो ।
रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय