भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बात नहीं अब सुनता हूं / चन्द्रगत भारती

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:40, 17 अक्टूबर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्द्रगत भारती |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उन लम्हों की बात न छेड़ो
पीर बहुत बढ़ जाती है।

भूल पुरानी बातें यारों
नये ख्वाब अब बुनता हूं !
अन्तर्मन को छोड़,नेह की
बात नहीं अब सुनता हूं !
याद तनिक जो आये उनकी
टीस उभर फिर आती है।।

जिन राहों में केवल पत्थर
उन राहों से जाना क्या !
मतलब की इस दुनिया में फिर
गीत प्रेम के गाना क्या !
बात पुरानी मगर कसम से
अन्दर अन्दर खाती है।

छोड़ अकेला चला गया जो
उससे अब कुछ क्या कहना !
शूल चुभाती रातों में अब
भोले सपने क्या बुनना !
मगर सोच सब इन आँखों में।
नाहक बदली छाती है ।

दिल के खालीपन को फिर भी
आज नहीं कल भर लूंगा !
उसके ऊपर आँच न आये
मुश्किल सारी हर लूंगा !
व्यथित जिन्दगी भले आज पर
गीत खुशी के गाती है।