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ख्वाहिशें तेरी / सुरेखा कादियान ‘सृजना’

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ठहर जाती हूँ राहों में मैं सुनके आहटें तेरी
कभी आँसू कभी ख़ुशियाँ हैं कैसी ख्वाहिशें तेरी

तेरी सूरत वो दर्पन है कि जिसमें प्यार दिखता है
तेरा साया वो आँगन है कि जिसमें चाँद खिलता है
तू जाने ना मुझे लेकिन तुझे तो जानती हूँ मैं
मेरे सजदों का हासिल तू यही तो मानती हूँ मैं
सुकूँ अपना मैं सब वारूँ, जो हासिल राहतें तेरी

तेरे शानों पे सर रखके मैं हर ग़म भूल जाती हूँ
रहूँ कितनी खफ़ा तुझसे तुझी संग मुस्कुराती हूँ
तू जब बोले तो लगता है बजे मोहन की बाँसुरी
तुम्हीं अब प्रीत तुम्हीं हर रीत बनी मैं प्रेम-माधुरी
मेरे मन के इस उपवन में सदा हों बारिशें तेरी

कभी आँसू कभी ख़ुशियाँ हैं कैसी ख्वाहिशें तेरी