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कार्य के संकल्प है / उर्मिल सत्यभूषण
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कार्य के संकल्प हैं
नारे नहीं हैं हम
देख लो इस वक्त से
हारे नहीं हैं हम
गर्दिशों में भी उमंग
ने साथ न छोड़ा
तिमिर न घेरा तो है
पर नहीं तोड़ा
आस्था के दीप हैं
तारे नहीं हैं हम
प्रबल झंझावात
में भी हम रूके नहीं
चट्टान ही टूटी मगर
हम झुके नहीं
आँख के आँसू तो हैं
धारे नहीं हैं हम
मुश्किलों मुसीबतों
को लगा गले
मुफ़लिसी के गाँव में
ही हम बढ़े पले
ठोस धातु के बने, पारे नहीं हैं हम
रात का दिल चीर फूटी
स्वर्ण की धारा
रोशनी को बाँध पाई
क्या कोई कारा
हम उजाले हैं कि अंधियारे नहीं हैं हम
देख लो इस वक्त से हारे नहीं हैं हम।