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ज्वार भर आया / महेन्द्र भटनागर
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नदी में ज्वार भर आया !
प्रलय हिल्लोल ऊँची
व्योम का मुख चूमने प्रतिपल
उठी बढ़ कर,
किनारे टूटते जाते
शिलाएँ बह रही हैं साथ,
भू को काटती गहरी बनातीं
तीव्र गति से दौड़ती जातीं
अमित लहरें
नहीं हो शांत
आकर एक के उपरांत !
भर-भर बह रही सरिता
कि मानों लिख रहा कवि
वेग से कविता !
बुलाता क्रांति की घड़ियाँ,
भयंकर नाश का सामान
जन-विद्रोह
भीषण आग,
भावावेश-गति ले
ज्वार भर आया !
नदी में ज्वार भर आया !