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मुझे भर नैन रोने दो / शिवकुमार 'बिलगरामी'
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नहीं कहता हूँ मैं तुमसे सुकूँ की नींद सोने दो ।
रहो बस दूर तुम मुझसे, मुझे भर नैन रोने दो ।
बसूँ मैं भी न आँखों में
न तुम दिल में उतर पाओ,
व्यथा गर अश्रु बन निकले
उसे चुपचाप पी जाओ,
अगर कुछ-कुछ हुआ भी हो तो अब कुछ भी न होने दो ।
रहो बस दूर तुम मुझसे, मुझे भर नैन रोने दो ।
करोगे क्या मुझे पाकर
रहोगे क्यों मेरे होकर,
चढ़ें जो फूल मस्तक पर
वही हों पैर की ठोकर,
मुझे तन्हा ही रहने दो मुझे पलकें भिगोने दो ।
रहो बस दूर मुझसे मुझे भर नैन रोने दो ।
कोई कुछ लेके पाता है
कोई कुछ देके पाता है,
जगत में तो हमेशा गुल
मगर ख़ुशबू लुटाता है,
जिसे जिसमें क़रार आए, उसे उसमें ही खोने दो ।
रहो बस दूर मुझसे, मुझे भर नैन रोने दो ।