भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सांस घुटती है / उर्मिल सत्यभूषण
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:16, 22 अक्टूबर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उर्मिल सत्यभूषण |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
सांस घुटती है कि जहरीली हवायें हो गईं
किस तरफ जायें कि धूमिल सब दिशायें हो गईं
शुद्ध और अशुद्ध वायु में कहाँ संतुलन है
कार्बन, मीथेन वाली सब हवायें हो गई
से हद पर भारी हुई ये नामुराद बीमारियाँ
अस्थमा, कैंसर को कमतर सब दवायें हो गई
एयर प्रदूषण बढ़ाया, वाहनों के धुंये ने
सड़ रहे कचरे से दूषित ये फिजायें हो गई
लील जायेंगी हमें सुनामियाँ, तूफान ये
अन्त है नजदीक ये संभावनायें हो गईं
हमको दे ताज़ा हवा, पीते रहे वो खुद ज़हर
नीलकंठी पेड़ों की शिवसी जटोय हो गईं।