भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ज़हर तो पिया हमने / उर्मिल सत्यभूषण
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:57, 22 अक्टूबर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उर्मिल सत्यभूषण |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
ज़हर तो पिया हमने
पी के जी लिया हमने
नाम की सुरा पाली
घूँट भर पिया हमने
सब्र की सुई लेकर
ज़ख्म हर सिया हमने
नूर से लबालब था
जो भी पल जिया हमने
मान कर खु़दा उसको
खुदको खो दिया हमने
पाँव में धरा तेरे
फूल सा हिया हमने
बेखुदी व उर्मिल को
एक कर दिया हमने।