भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अनकहा, कहा न जाये / उर्मिल सत्यभूषण

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:13, 23 अक्टूबर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उर्मिल सत्यभूषण |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अनकहा, कहा न जाये
बिन कहे रहा न जाये

फांस चुभी प्राणों में ऐसी
दर्द यह सहा न जाये

रेत हो गई नदी देह की
अब तो बहा न जाये

छूट गया जो हाथ राह में
हाथ वो गहा न जायें

काठ राख हुई दहते दहते
राख से दहा न जाये

पी पी रटते जीभ थक गई
पी बिना रहा न जाये

उर्मिल सूखी अश्रुधारा
अविरल बहा न जाये।