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उनके बगैर जिं़दगी अपंग रह गई / उर्मिल सत्यभूषण

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उनके बगैर जिं़दगी अपंग रह गई
दुनिया बहुत रंगीन थी, बेरंग रह गई

किससे करूँ शिकायतें, शिकवे करूँ कहाँ
लड़ने को मेरे वास्ते इक जंग रह गई

तस्वीर में मैं भर रही थी रंग प्यार के
सब रंग उड़ गये वो बदरंग रह गई

पारे की भांति हाथ से मेरे फिसल गये
मैं देखती ही झिलमिलाते रंग रह गई

अब मैं हूँ मेरे साथ है जलती चिता सी रात
उर्मिल करे क्या याद का जो संग रह गई।