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अनाथ / मुहम्मद अल-मग़ूत / विनोद दास

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ओह
वह सपना
वह सपना
ठोस सोने की मेरी कार लड़कर चकनाचूर हो गई
उसके पहिये जिप्सियों की तरह छितर गए

बसन्त की एक रात में मैंने एक सपना देखा था
और जब मेरी आँख खुली
मेरे तकिये पर फूल छितरे थे

एक बार मैंने सपने में समुद्र देखा
और सुबह मेरे बिस्तर पर
मछलियों के पर और सीपियाँ थीं
लेकिन जब मैंने आज़ादी का सपना देखा
मेरी गर्दन तलवारों के निशानों पर थीं

भोर की उजास की तरह अब आगे से
मुझे आप न तो पाएँगें किसी बन्दरगाह पर
और न ही किसी रेलगाड़ी में

मैं मिलूँगा, बस, किताबघर में
यूरोप के नक़्शे पर सोता हुआ
जहाँ मेरा मुँह नदियों को छूता है
और मेरे आँसू महाद्वीपों से होकर बहते हैं

अँग्रेज़ी से अनुवाद : विनोद दास

लीजिए, अब यही कविता अँग्रेज़ी में पढ़िए
        Mohamed Al-Maghout
             The Orphan

Oh! The dream, the dream!
My sturdy gilded wagon
Has broken down
Its wheels have scattered like gypsies everywhere.
One night I dream of spring
And when I woke
Flowers had covered my pillow.
I dreamt once of the sea
And in the morning
My bed was full of shells and fins of fishes
But when I dreamt of freedom
Spears were surrounding my neck
Like the morning halo.
From now on you will not find me
In ports or among trains
But there … in public libraries
Falling asleep over the maps of the world
(As the orphan sleeps on the pavement)
Where my lips touch more than one river
And my tears stream
From continent to continent.

Translated by May Jayyusi and John Heath-Stubbs