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जड़ चेतन सब धन्य / प्रेमलता त्रिपाठी
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हरि ने मानुष तन धरे, जड़ चेतन सब धन्य।
राधे कृष्णा जाप से, मगन हुए चैैतन्य।
बंसी मदन गुपाल की, वशीकरण का मंत्र,
गोप सखा वृषभानुजा, हर्षित गोकुल जन्य।
मन मयूर नाचे जहाँ, सखा स्वयं जगदीश,
गिरिधारी चितचोर तुम, दूजे देव न अन्य।
नाच उठी यमुना गहर, तरु कदंब की छाँव,
प्रीति राधिका साँवरे, संग सदा अनुमन्य।
करें अस्मिता तार सब, विघ्न हरो करतार,
बढ़ा चीर मर्दन करो, रोको कर्म जघन्य।