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नौका यह बिन पाल / प्रेमलता त्रिपाठी
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आँधी में भी अब खेना है, नौका यह बिन पाल।
सदा आत्मबल हमें चाहिये, चलना स्वयं सँभाल।
सिसक रहा कश्मीर हमारा, जो था स्वर्ग समान,
बहा रक्त संग्राम बढ़ा जो, किया रूप विकराल।
अकथ वेदना क्रंदन फैला, लज्जा होती तार,
विनती सुनो अरे! मधुसूदन, न्याय करो तत्काल।
देर नहीं तुम धरो सुदर्शन, करो दैत्य संहार,
बढ़ते जा रहे शत्रु असंख्य, नगर-नगर शिशुपाल।
प्रेम पुनीत मन कीट देता, लौ पर जीवन वार,
नहीं मानता तन-मन अपना, फँसता निज जंजाल।