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शराबी से / महेन्द्र भटनागर

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मनुष्य हो अगर तो फिर शराब मत पिया करो !

तुम्हारे हाथ में भरा हुआ गिलास जो,
उसे समझ ज़हर तुरन्त आज फोड़ दो,
बुझा सके कभी न दिल की हाय! प्यास जो
उसे गलीज़ व्यर्थ जान जल्द छोड़ दो,
मनुष्य हो अगर तो फिर नशा नहीं किया करो !


स्वतंत्र - जो बिना सुरा के शान से जिए,
शराब है बुरी सदा अमीर के लिए,
शराब है बुरी छुरी सदा ग़रीब के लिए,
शराब है सदा बुरी शरीर के लिए !
मनुष्य हो अगर तो सभ्यता के सामने डरो !
(1 पंजाब सरकार के अनुरोध पर लिखित।)