भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रीतम के घर जाना है / प्रेमलता त्रिपाठी
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:42, 30 अक्टूबर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेमलता त्रिपाठी |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
रंगरेज चुनरिया रंग दो, प्रीतम के घर जाना हैै।
पाँव पैजनी घूँघर वाली, पहन पिया को पाना है।
रंगत लाली अधर सुहाये, उलझ रही अलकों में थी
लाज भरे नैना पट खोले, जग की रीति निभाना है।
घनी साँवरी रात डग भरे, शनै-शनै ले अँगड़ाई,
कनक हिंडोले चढ़ी सजनिया, पिय को आज रिझाना है।
सपने देखें नयन प्रीति के, मुखरित होती अँगनाई,
मंगल बेला ब्रह्म मिलन की, मनको मिला खजाना है।
चटक सयानी झूमे डाली, गमक उठा जब मलयानिल,
पीहर से पिय द्वार चली अब, कण-कण मुझे सजाना है।