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प्रीतम के घर जाना है / प्रेमलता त्रिपाठी

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रंगरेज चुनरिया रंग दो, प्रीतम के घर जाना हैै।
पाँव पैजनी घूँघर वाली, पहन पिया को पाना है।

रंगत लाली अधर सुहाये, उलझ रही अलकों में थी
लाज भरे नैना पट खोले, जग की रीति निभाना है।

घनी साँवरी रात डग भरे, शनै-शनै ले अँगड़ाई,
कनक हिंडोले चढ़ी सजनिया, पिय को आज रिझाना है।

सपने देखें नयन प्रीति के, मुखरित होती अँगनाई,
मंगल बेला ब्रह्म मिलन की, मनको मिला खजाना है।

चटक सयानी झूमे डाली, गमक उठा जब मलयानिल,
पीहर से पिय द्वार चली अब, कण-कण मुझे सजाना है।