भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
डिगना नहीं सीखा / प्रेमलता त्रिपाठी
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:29, 30 अक्टूबर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेमलता त्रिपाठी |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
सत्य के पथ से कभी डिगना नहीं सीखा।
झूठ पर हम ने कभी लड़ना नहीं सीखा।
ध्येय हमनें सत्य पर रहना बनाया जब,
राह पर बढ़ते रहें रुकना नहीं सीखा।
धारणा अपनी रही मिलकर चलेंगे हम,
टाल कर हर नीति को बढ़ना नहीं सीखा।
तोड़ सारे बंधनों को लौ जगायी है,
हैं धरा के दीप हम बुझना नहीं सीखा।
कौन जाने छूट जाये साथ अपना कब,
बाँटते सुख-दुख सदा बचना नहीं सीखा।
मन भिखारी क्यों बना है प्रेम के पथ पर,
द्वेष भावों से कभी जलना नहीं सीखा।