भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बन दीप दें उजाला / प्रेमलता त्रिपाठी

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:11, 30 अक्टूबर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेमलता त्रिपाठी |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बन दीप दें उजाला, स्नेहिल भरें तराना।
पग डगमगा रहें हो, पथको हमें दिखाना।

आओ चलें कहीं हम, दुनिया नयी बसा लें,
आँसू नहीं नयन हो, ऐसा बनें ठिकाना।

सैलाब उठ रहा है, घनघोर आपदा में,
सहयोग-प्रण करें सब, बाधा हमें मिटाना।

मँझधार में न डूबे, नौका कहीं हमारी,
पतवार हाथ लेकर, साहस हमें बढ़ाना।

अपनी कथा सुनाकर, हिमखंड गल रहें हैं,
होगा सदा विखंडन, हरिताभ को बचाना।

जीवन मरण अटल है, निष्काम साधना हो,
सत्कर्म मार्ग से तुम, आँखें नहीं चुराना।

पथ कंटकों सुनों तुम, आशा बली हमारी,
बन प्रेम पुष्प जीवन, इसको मुझे चढ़ाना।