भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मुक्ता माणिक से अक्षर / प्रेमलता त्रिपाठी

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:22, 30 अक्टूबर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेमलता त्रिपाठी |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुक्ता माणिक से अक्षर को, अंक भरे जो गर्वित है
शून्य भरे प्रतिपल जीवन के, पुस्तक ज्ञान समर्पित है।

मन वाणी से बोझिल जन को, देती जो एक सहारा,
नवल किरण की आभा पुस्तक, करता मन को हर्षित है।

ज्ञान कोष की धारा पुस्तक, स्नात करें मन को पावन,
भरे उजाला तमस हटाकर, करे न मन को दर्पित है।

सागर सुंदर साहित्यांगन, खोजें मन की गहराई,
हैअनमोल धरोहर पुस्तक, मनहर जीवन दर्शित है।

ज्ञान चक्षु खोले यह अनुपम, पुस्तक होती वह दर्पण,
प्रेम बनायें साथी पुस्तक, सब कुछ इसमें वर्णित है।