भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पंथ प्यारे मिले / प्रेमलता त्रिपाठी

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:34, 30 अक्टूबर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेमलता त्रिपाठी |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

प्रीत आधार हो पंथ प्यारे मिले।
रंग देती हिना बिन सँवारे मिले।

गाँव बसते रहे प्रीत खोती रही,
द्वेष मन के मिटा मीत न्यारे मिले।

दर्प आनंद खोता रहेगा सदा,
धूप में छाँव तरु के सहारे मिले।

श्वांस अनुबंधनों को नहीं मानती,
एक दिन पंच ये तत्व सारे मिले।

डोर जीवन सधे प्रेम में डूबकर,
हर विधा साधिए स्नेह वारे मिले।