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बनती कविता / प्रेमलता त्रिपाठी
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भावानुकूल बनती कविता।
ईर्ष्या विकार हरती कविता।
माता सदैव वर दो हमको,
आशीष माँग करती कविता।
लाली सुहाग सविता जिसमें,
ऐसा उजास भरती कविता।
श्रंृगार ताल लय साथ रहे,
छंदानुकूल सजती कविता।
धारानुकूल सरिता बहती,
एकांत प्रीत ढलती कविता।
संकेत ज्ञान यदि हो विविधा,
विश्वास नीति कहती कविता।
झंझा बयार सम जीवन में,
संगीत प्रेम झरती कविता।