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हवन चाहिए / प्रेमलता त्रिपाठी
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जले दीप निश-दिन अगन चाहिए।
नहीं हाथ जलता हवन चाहिए।
चुनंे हम सदय दर्द आँसू जहाँ,
हृदय भाव चिंतन गहन चाहिए।
नहीं सुप्त रखना विजय कामना,
ध्वजा शौर्य फहरे गगन चाहिए।
तिमिर को मिटा दो प्रमद को छलो,
जगे त्रासदी में नयन चाहिए।
उठे मान अपना यही भावना,
प्रणत लौ शिखा सम लगन चाहिए।
फड़कतीं भुजाएँ सतत शौैर्य से,
सहज देश हित रिपु दमन चाहिए।
मनन देश हित हो सर्जन माधुरी,
बहे प्रेम सरगम पवन चाहिए।