भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आजमाया है तुम्हीं ने / प्रेमलता त्रिपाठी
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:48, 30 अक्टूबर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेमलता त्रिपाठी |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
व्यर्थ बातों में मुझे ही आजमाया है तुम्हीं ने।
कुछ सुनी मेरी न अपनी ही सुनाया है तुम्हीं ने।
क्यों दिया हर बार मुझको ही सजा ऐसी कहो तो
था लिखा क्या रेत पर जिसको मिटाया है तुम्ही ने।
पास रहने की कसम खायी सदा यह सोचना तुम,
दूर जा हर बार हमको फिर रुलाया है तुम्हीं ने।
हूँ अगर अवरोध बनकर मैं तुम्हारे मार्ग का अब,
कल्पना यह क्यों रही पलकों बिठाया है तुम्हीं ने।
आइना हूँ कर्म का अपने स्वयं ही आज तक मैं
प्रेम हूँ आँसू नयन जिसको छिपाया है तुम्हीं ने।