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आयी बनठन / प्रेमलता त्रिपाठी

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पूनम शोभित रात, चाँदनी आयी बनठन।
रजत ओढ़नी गात, रागिनी गाये दुल्हन॥

प्रीतम चंदा द्वार, सजी गलियाँ चौबारे।
निशा करे श्रंृगार, महकता जैसे यौवन॥

पट घूँघट के खोल, सरस रजनी मुस्काये।
करे पपीहा शोर, मिलन को तरसे तन मन॥

बहती यमुना धार, साँवरे रंग समायी।
आयेंगे यदुनाथ, बढ़े खुशियों से धड़कन॥

प्रेम जगत निस्सार, बाँवरी प्रीत न माने।
जाता मन भी हार, नहीं घटती यह उलझन॥