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देश का गौरव / प्रेमलता त्रिपाठी
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देश का गौरव बढ़ाती जीतती हर दाँव लिख दूँ।
बेटियाँ जो मान पातीं माँ पिता की छाँव लिख दूँ।
सोच बदली भाग्य बदले ज्ञान से बढ़ते कदम पर,
कम न होगा अब उजाला हर दिशा हर ठाँव लिख दूँ।
दो कुलों का मान बढ़ता एक बेटी को पढ़ाकर,
द्वार सुंदर सज उठेगें शुभ उसी के पाँव लिख दूँ।
मत कहें बेटी पराई ईश का वरदान हैं वे,
पुत्र या पुत्री अलग क्यों मन सुलगता आँव लिख दूँ।
धाविका "दुतिचंद" ने पाया पदक गौरव बढ़ाया,
प्रेम वह, माता पिता है धन्य है वह गाँव लिख दूँ।