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अमन की रोशनी / महेन्द्र भटनागर
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युद्ध-अन्धकार-वक्ष फाड़
जगमगा रही
नवीन शांति की किरण !
जंगखोर-शक्ति के
तमाम व्यूह तोड़
बढ़ रहे
सशक्त विश्व के चरण !
आसमान में असंख्य हाथ
उठ रहे
:
कि हम बिना
समस्त
युद्ध-सर्प-दंश काटकर,
व बर्बरों के हाथ से
सरल-सुशील सभ्यता-वधू
निकालकर
न चैन से कभी भी
बैठ पाएंगे !
असंख्य दृष्टियाँ लगी हुईं
नवीन राह पर,
कि हम
बिना प्रभात के हुए
व तामसी निशा
विनाश के हुए
(नहीं-नहीं !)
अपार नींद के समुद्र में
कभी न डूब पाएंगे !
क्योंकि बद्ध-द्वार
युद्ध-दुर्ग के खुले,
व शक्ति के प्रहार से
तमाम अस्त्र-शस्त्र
ध्वस्त हो रहे !
जंगबाज़
(जो कि विश्व का उलूक-वर्ग है)
अमन की रोशनी से
त्रस्त हो रहे !