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तस्वीर समाज की / आशुतोष सिंह 'साक्षी'

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मैं अपनी पुरानी तस्वीर को
अपने वर्तमान चेहरे से मिला रहा हूँ।
कितना बदल गया हूँ मैं,
मेरी निश्छल आँखें अब कितनी छली हो गई हैं।
मेरे चेहरे की मासूमियत
न जाने कहाँ खो गई है।
आज इतने सालों बाद,
अपनी पुरानी तस्वीर को देखकर
मैं खुद आश्चर्यचकित हूँ।
कितना बदल गया है मेरा मन भी
मेरे चेहरे के साथ।
हमारा समाज भी इतना बदल गया क्यों
मेरे चेहरे के साथ।
क्यों नहीं किसी के दुःख में हम
अब शरीक़ होते हैं।
बदल गये हैं चेहरे सबके
सब अकेले-अकेले ही रोते हैं।
क्यों नहीं पड़ोसी से हम अब
एक चम्मच दही माँग सकते,
क्यों नहीं हम अब अपनों के सामने रो सकते।
क्यों बेवजह आ गये हैं हम इतने सकते में।
दुख तो दूर की बात है,
सुख भी बाँट नहीं सकते।
लौट क्यों नहीं आते हम अपने सुन्दर चेहरे में,
उसी प्यारे मोहल्ले में सद्भावना के पहरे में॥