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रिश्ते नाते / आशुतोष सिंह 'साक्षी'
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लोग आते हैं लोग जाते हैं।
कुछ खोते हैं कुछ पाते हैं॥
हमें दुख है उनके जाने का।
लो लौट के घर नहीं आते हैं॥
जाने वाले तो चले गए।
हम पीछे पछताते हैं॥
उन यादों को उन बातों को।
हम आपस में बतियाते हैं॥
रुक-रुक कर बहते आँसू को।
हम रोक नहीं क्यों पाते हैं॥
कुछ खुले हैं कुछ बँधे हैं।
ये ऐसे रिश्ते-नाते हैं॥
ये ऐसे रिश्ते-नाते हैं॥