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प्रार्थनारत / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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प्रार्थनारत 
अधीर हैं नयन 
कि  हों दर्शन ।
147
साँझ निहारे 
कब आएगा चाँद 
उसके द्वारे।
148
नग्न डालियाँ 
पात ने छोड़ा  साथ 
खाली हैं हाथ ।
149
भ्रम न तोड़ो 
साँसों  की  यह  डोर 
यों ही न छोड़ो ।
150
मेहँदी  रची
चाँद डूबा आँगन
आँसू  उमड़े !
151
मैं  डूब  जाऊँ
मंजूर सदा मुझे
कोई न रोए।
152
क्या ले जाना
खाली हाथ ही जाना
दम्भ छोड़ दो ।
153
नाम की भूख
बना देती पागल
अब सँभल ।
154
सुनो परिधि !
व्यास जाए भी कहाँ
तुम्हें  छोड़के।
155
मिलें तो चुभे
त्रिभुज के कोण -सी
बातें तुम्हारी।
156
भरा है कंठ
सपने भी टूटे  है
कहाँ छुपे तुम।
157
पृथिवी माता
तुझसे है जीवन
तुझे नमन ।
158
शक्तिस्वरूपा!
तुमसे पाता बल
मन दुर्बल।
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