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रात लम्बी रात से लम्बे पहर / रामकुमार कृषक
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रात लम्बी रात से लम्बे पहर
और ऊपर सर्द मौसम का क़हर
चुभ रही है रात आँखों में, मगर
रात के घर सो रही जाकर सहर
धुन्ध - कुहरा और अन्धियारा सगे
रोशनी पीली पड़ी पीकर ज़हर
अश्रु ढुलके और जा ध्रुव पर बसे
नाम के सागर नहीं कोई लहर