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चिड़िया और मैं / बीना रानी गुप्ता

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मैं बैठी हूँ अकेली
सोंचू, जीवन है पहेली
तभी देखा सामने एक नीम का पेड़
जिस पर बना था चिड़िया का नीड़
जन्मे नन्हे बच्चे
बाहर निकाल रहे थे मुख
अकेले होने का दुःख
प्रतीक्षारत आँखें
आकाश निहार रहीं थीं
माँ आएगी दाना तिनका खिलाएगी
हमारी भूख मिटाएगी
चिड़िया आयी
चोंच में दाना चुनकर लायी
बड़े प्यार से
चोंच में चोंच मिला रही थी
स्वयं न खा उन्हें खिला रही थी
यह देख मन हुआ अधीर
कल यह चिड़िया भी
एकाकी हो जाएगी।
पंख निकले तो
बच्चे उड़ जाएंगे
स्मृतियाँ रह जाएंगी शेष
वे बनेंगी जीने का अवलम्ब
फिर भी होगा
सुख का अहसास
छू गए आकाश की ऊँचाई
चिड़िया में पाती
मैं अपनी परछाई।