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विश्रांति / बीना रानी गुप्ता
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जिन्दगी भर राहें खोजता ही रहा
कांटों में फूल चुनता ही रहा
कभी इस डाल
कभी उस डाल
नित नए नीड़ बुनता ही रहा
अपनी जमीं से दूर
घरौंदे बनाए बहुत
पर माटी से मिलने को दिल
तरसता ही रहा
बचपन के संगी साथी
याद आए बहुत
हंसी ठिठोली गुम हो गई कहीं
स्मृतियों से ख़ुशी के फूल
चुनता ही रहा
बंजारा सा जीवन
रूकेगा तो कभी
लट्टू सा मैं
घूमता ही रहा
रोजी रोटी की खातिर
हुआ अपनों से दूर
परायों में अपनों को
ढूंढता ही रहा
विश्रांति की आई घड़ी
जीवनसंगिनी हो गई विदा
चिरशांति की खोज में
भटकता ही रहा
विश्रांति की डगर
खोजता ही रहा।