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बेटियाँ / बीना रानी गुप्ता
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बेटियाँ
कभी-कभी
माँ की माँ बन जाती हैं
रोती है माँ
तो पोंछती हैं आँसू
सहलाती हैं माथा
हाथ कसकर पकड़ती
कभी दिखाती हैं रास्ता
माथे की शिकन को पहचानती हैं।
पिता से भी लड़ लेती
कभी माँ की ढाल बन
पुचकारती हैं।
घर को सँवारें
दवाई न खाने पर
डाँटती है।
कभी बेटियाँ
माँ की माँ
बन जाती हैं।