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सागर का अन्तर्लोक / बीना रानी गुप्ता

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सागर का अन्तर्लोक
मानव के मन बुद्धि सा निगूढ़
रहस्यलोक
मन की गुफाओं में छुपे रहस्यों की पर्तें दर पर्तें
खोलना आसान नहीं
सागर का अन्तर्लोक
छुपाए है असंख्य लोक
फैला है सुदूर तक
नीला आँचल
जिसकी गोद में
कोख में पल रहे
असंख्य जीवजन्तु
मत्स्य लोक
कच्छप लोक
नाग लोक
कोरल की भूरी
कत्थई, लाल चट्टानें
काँटेदार वृक्ष
सूक्ष्म जीव मिलकर
बनाते अमूल्य कोरल सम्पदा
ये मात्र नहीं जीव
श्रमिक हैं जो चला रहे
उद्योग संस्थान
जैसे मधुमक्खी बनाती
शहद का छत्ता
पारिस्थितिक संतुलन का
यह अद्भुत लोक
घोंघे, मछली, केंकड़ा
व्हेल, आक्टोपस, एनाकोंडा
सब रहते एक साथ।
फिनो से साँस भरती
मुख में पानी भरे
इंद्रधनुषी-बहुरंगी मछलियाँ
खेलतीं छुपमछुपाई
पकड़म-पकड़ाई
ठंडी रेत में करते
घोंघे-केकड़े करते विश्राम
सीपियाँ मुख खोले
करती प्रतीक्षा
पड़े कोई स्वाति बूंद
रच दे वह शुभ्र मोती
सागर के गर्भ से जन्मी
उन्नत चट्टाने और पहाड़
वनस्पतियाँ जीवनदायिनी
औषधियों का भंडार
त्रिगुणात्मक सृष्टि का आगार
जन्मते, पलते और मरते
नित नये जीव
सागर शाश्वत जीवन का सार
हर कोई चाहता अमृत
हर कोई नहीं होता शिव सा विषपायी
समुद्र-मंथन में निकले
चैदह रत्न
रत्नाकर कहलाये
समुद्र का कर रहे दोहन
विषैले रसायन बहायें
करते परमाणु विस्फोट
जला रहे कोख
क्रोधित जलनिधि
सुनामी लहरों से करता विध्वंस
लेता मानव से प्रतिशोध
समुद्र की पीड़ा को जानो
अपने अतंर्मन के सात्विक द्वार खोलो
तभी जानोगे
सागर का अन्तर्लोक।