भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पल भर के सम्वेदन / विजया सती

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:57, 21 अगस्त 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजया सती }} '''1. हर साल नए ढंग से आता है हर मौसम मन भी क्य...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

1.

हर साल

नए ढंग से आता है हर मौसम

मन भी क्या

कोई मौसम है ?


2.


एक सुबह

उस दिन हुई थी

और एक आज है!

मुझे नहीं मालूम

दोनों के फ़र्क का

मन से क्या रिश्ता है ?


3.


मैंने सहजता में ज़िंदगी को पाया

तुमने मुझ में क्या पाया ?


4.


सोए हुए को जगाना चाहिए-

मैंने कहा

और जागा था सागर अगाध एक उस दिन

आश्चर्य कि वह

खारा भी नहीं था!


5.


सुबह-शाम चहका करती थी-

बुलबुल

वह हो गई ग़ुम

एक झौंके में तपती दोपहर में

बदली हूँ मैं!