भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कुशलता की हद / कुमार अंबुज
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:29, 9 नवम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार अंबुज |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
यायावरी और आजीविका के रास्तों से गुज़रना ही होता है
और जैसा कि कहा गया है इसमें कोई सावधानी काम नहीं आती
बल्कि अकुशलता ही देती है कुछ दूर तक साथ
जो कहते हैं: हमने यह रास्ता कौशल से चुना
वे याद कर सकते हैं :
उन्हें इस राह पर धकेला गया था
जीवन रीतता चला जाता है और भरी बोतल का
ढक्कन ठीक से खोलना किसी को नहीं आता
अकसर द्रव छलक जाता है कमीज़ और पैण्ट की सन्धि पर
छोटी सी बात है लेकिन गिलास से पानी पिए लम्बा वक़्त गुज़र जाता है
हर जगह बोतल मिलती है जिससे पानी पीना भी है एक कुशलता
जो निपुण हैं अनेक क्रियाओं में वे जानते ही हैं
कि विशेषज्ञ होना नए सिरे से नौसिखिया होना है
कुशलता की हद है कि एक दिन एक फूल को
क्रेन से उठाया जाता है ।