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गाय की यौनेच्छा / सुशील 'मानव'

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तमाम इंसानी नैतिकताओं को बताते हुए धता
पुरजोर चोंकरती है गाय
कामेच्छा से भरकर
कभी-कभी तो लगातार, पूरे-पूरे दिन
बाकायदा करते हुए ऐलान
कि चाहिए एक अदद साँड़, समागम ख़ातिर

बहुतायत हुआ करते थे जब साँड़
ख़ुद-ब-ख़ुद चले आते थे पागल प्रेमियों की तरह, गायों के बुलावे पर
सुनकर उनकी कामतप्त पुकार
सूँघते फिजाओं में, मदमाती यौनिक गन्ध
कई बार हवाओं के बहाव सँग जब
पहुँचती फेरोमोंस की गन्ध एक साथ कई चौंड़े मुँछहे नथुनों तलक
तो एक से ज़्यादा साँड़ आ धमकते गाय के पास
और घण्टों के कटाजुझ्झ के बाद कमज़ोर साँड पीछे हट जाते
और विजेता सँग समागम करती गाय

एक वो भी वक़्त था जब, गाय और भैंस चरने जातीं खुले मैदानों में
और, अपनी यौनिक ज़रूरतो की पूर्ति कर
वापिस आ जातीं चरही पर, धनाकर चुपचाप

एक वक़्त, गाय के गरम होने पर
हम लिवा जाते
अपने गांव या दूसरे गांव के उस आदमी के दुआरे
जो पालकर रखता था साँड़
और अम्मा पहले से ही बनाकर रखती थी गुड़ का घोल
और छुआकर हल्दी-अक्षत गाय के खुर सिर और पीठ से
पूरे घर को हिदायत देती, ख़बरदार
ग़र एक भी लौंचा छुआ जो गाय के देह से

जबकि आज डॉक्टर पशु दे गया है हिदायत
बैठने न पाए गाय अगले तीन घण्टे तलक
और डण्डा लिए रखवाली कर रहे लोग

एक फ़ोनकॉल पर आ धमकता है पशु डॉक्टर
और पूछता है पूरी बेशर्मी से
किसका बीज डालूँ, साहीवाल का या कि जर्सी का
वो यूँ ही हर महीने क़िस्म-क़िस्म के उन्नत बीज लिए आता है
और ज़्यादा उन्नत ज़्यादा पैदावार देने वाली नस्ल के सपने देकर
प्लास्टिक ट्यूब से आरोपित कर देता है सीमन
गाय की गरम योनि में
जबकि खूँटे में बन्धी-बन्धी गाय
विरहिणी सी कसमसाती तड़फड़ाती रह जाती है अपनी यौनिक ज़रूरतों के बरअक्स

जबकि अपनी जेब गरम कर चला जाता है डॉ० पशु
और फिर फिर चोंकरने लगती है गाय
दूसरे ही महीने गरम होकर
आजिज आकर कहते हैं पिता — बेच ही दो इसे
औने-पौने जो भी मिल जाए दाम
ठूँठ गाय को भला कौन पूछेगा, दलील देता है छोटा भाई
माँ कहती है दो-चार दिन लगातार
ले जाकर बान्ध दो ताल के किनारे
कि बहुत से साँड़ आते हैं वहाँ, घास चरने
जबकि बार-बार गाय को करके पशु डॉक्टर के हवाले
उसकी यौनेच्छाओं को आहुत कर देते हैं पिता

क्रोध में सींग से मार-मारकर, गाय गिरा देती है हउदा
उलझार देती है सारा चारा, चरही के बाहर
लगातार कूदती-फाँदती पेरती रहती है, खूँटे के चारों ओर
बेहद हिंसक होकर
दूर से झौंउकारती है चारा-पानी डालने वाले को भी
और फिर किसी तरह खूँटा-पगहा तुड़ाकर भाग खड़ी होती है गाय
घर से भागी लड़कियों की मानिन्द
गाय के पीछे लग जाते हैं हेरवइया
कुछ देर डहडहाने-फटफटाने के बाद पकड़ ही लाते हैं वो वापिस
और पहले से ज़्यादा मजबूत खूँटे में बाँध दी जाती है गाय
सकड़े में जकड़ी-जकड़ी हफनाती है गाय
अधराहे धराई प्रेमिकाओं की तरह
गाय को देखकर बार बार उभरता है मेरे जेहन में
अभुवाती बुआ का अक्स
विदेशिया फूफा से वर्षों की दूरी में
जब खेलता था उनकी देह पर भूत ।