कुछ बिगड़ी हुई लड़कियाँ / जोशना बनर्जी आडवानी
कुछ बिगड़ी हुई लड़कियाँ
जब स्कूल मे होती है तो अपना
होमवर्क अपने क्रश से करवाती है
उन्हे पसन्द नही होता कैटवाॅक करना
जब काॅलेज जाती है तो बोले गये डीबेट
के लिये तालियो की गड़गड़ाहट ही
उनका पसन्दीदा गीत होता है
कुछ बिगड़ी हुई लड़कियाँ
बंक मारा करती है, नही पढ़ती साल भर
परीक्षा से ठीक पहले वाली रात
तैयारी कर तूती बजाया करती है
36,34,36 के मानको मे नही बँधा करती
नही सोती मुलायम बिस्तर पर
उनकी थकान उनका डनलप हुआ करता है
कुछ बिगड़ी हुई लड़कियाँ
छुपा लेती है माँ बाप से अपनी तकलीफे
खुद ही अदालत लगा खुद ही अपना
फैसला किया करती है
मुठ्ठियाँ भींच कर नही सुनती समाज के ताने
मुँहजोर जवाब दे सुन्न किया
करती है फूहड़ लोगो के कान
कुछ बिगड़ी हुई लड़कियाँ
खाक होने की ख्वाहिश रखती है
पर जलने नही देती खुद को
कमर बलखा कर नही चलती
ना ही किया करती है किनारो से इश्क
लहरो की फिराक मे शोर
मचाया करती है
कुछ बिगड़ी हुई लड़कियाँ
दंबगई से चीरती है उलझनो का सीना
उनका "i can" उनके "iq" से बहुत
बहुत बड़ा होता है
ज़िद्दी होती है नही करती समझौता
बिना बुकमार्क के ज़िन्दगी के पन्नो को
पढ़ा करती है
कुछ बिगड़ी हुई लड़कियाँ
पसन्द नही करती तड़क भड़क
ऊल झलूल गाने सुनना
वे पसन्द करती है पहाड़ो पर चढ़ना,
गिरना और छील लेना खुद के घुटने
देवदार बन विशालकाय छत्र
घेरा बनाती है
कुछ बिगड़ी हुई लड़कियाँ
छोटे छोटे कपड़े पहन शीशे के सामने
इतराया नही करती
हील्स नही वे पहनती है हवाई चप्पल
ज़रूरत पड़ने पर बिजली के बोर्ड,
मीटर की तारे और खराब नल ठीक
कर लिया करती है
कुछ बिगड़ी हुई लड़कियाँ
नही होती है नाज़ुक
ना ही कमसिन होने का ढोंग करती है
होती है जंगली याक
नज़र झुका कर चलना उनकी अदा नही
हर अन्याय पर नथुनो को
फुला भभकती है
कुछ बिगड़ी हुई लड़कियाँ
कर्कश ध्वनि सुन खामोशी नही ओढ़ती
ना ही बटोरती है चाँद की रौशनी
उनकी पुतलियो के तीरे
अलाव बन रास्तो को चौंधियाते है
हथेलियो पर जुगनू सजा
ब्रहमाण्ड को ठेंगा दिखाया करती है
कुछ बिगड़ी हुई लड़कियाँ
इश्क नही किया करती
वे करती है इब्नेइंशा वाला फ्लर्ट
जानती है टिकाऊँ कुछ भी नही
लड़केवालो से शर्माती नही
उनके आँखो मे झाँककर सवाल
करती है और कहलाती है बेशर्म
कुछ बिगड़ी हुई लड़कियाँ
बालो के किनारो से लटे नही
निकाला करती
कौलर ऊपर कर चक दे फट्टे कह
भीड़ को चीरती हुई हाउसफुल
वाले टिकट काउन्टर पर
धौल धप्पा जमाया करती है
कुछ बिगड़ी हुई लड़कियाँ
गाँधारी बन समाज के लिये उदाहरण
नही बनेंगी
ज़रूरत पड़ने पर नोच लेंगी
गिद्धो की आँखे
अपने माँ बाबा को श्रवण बन
पालती है
कुछ बिगड़ी हुई लड़कियाँ
अपना दिल तेज़ाब कर बैठती है
उन्हे चाह नही लम्बे तने वाले गुलाब की
या चाॅकलैट्स की
वे अपने आप मे इस्तानबुल शहर होती है
लड़को के झाँसो का
शिकार नही बनती
कुछ बिगड़ी हुई लड़कियाँ
अपने अहम को अपने झूठे बर्तनो
के साथ धो दिया करती है
फकीर हुआ करती है
आवारियत का कलमा पढ़ा करती है
कलुषित कायरो के लिये शौर्यगाथा
हुआ करती है
देवो के पसन्दीदा टापू की जंगली फूल
होती है बिगड़ी हुई लड़कियाँ
समाज से ही मिलता है इन्हे
बिगड़ी हुई लड़कियो वाला बिल्ला
यही बिगड़ी हुई लड़कियाँ समाज को अपने
दाऐं पैर के अगूँठे से ठेल कर नये कीर्तिमान
स्थापित करती है
और मिले हुये बिल्ले को गिल्ली बना अपने रौब
के डण्डे से समाज की आँख फोड़ती है
कुछ बिगड़ी हुई लड़कियाँ ....