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तन्द्रा / जोशना बनर्जी आडवानी

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जैसे राजमार्ग में रह जाती हैं सड़कें
सड़को मे रह जाती हैं संकरी गलियाँ
गलियों मे रह जाते हैं कुछ एक मोड़
मोड़ पर रह जाती है गुज़रने की जगह
ठीक उसी तरह
बनो तुम मेरे लिये कभी एक कोना
जहाँ जब जी चाहे
लौटा जा सके
ठहरा जा सके

जैसे संवाद में रह जाती हैं संभावनाऐं
संभावनाओं में रह जाती हैं कुछ उम्मीदें
उम्मीदो मे रह जाती हैं सपनीली आँखें
आँखों मे रह जाता है एक खुफिया सपना
ठीक उसी तरह
बनो तुम मेरे लिये कभी एक छज्जा
जहाँ जब जी चाहे
बैठा जा सके
चहका जा सके

जैसे कविताओं में रह जाती हैं कहानियाँ
कहानियों में रह जाती है प्रेरणादायी सीख
सीख में रह जाती है प्रेम के बाद की मुहिम
मुहिम मे रह जाती है एक असभ्य सी आग
ठीक उसी तरह
बनो तुम मेरे लिये कभी एक गोशा
जहाँ जब जी चाहे
छुपा जा सके
ऊँघा जा सके

जैसे सफर मे पीछे रह जाते हैं असंख्य पेड़
पेड़ो मे रह जाते है कई कई जीवनदायी बीज
बीजो मे रह जाता है दसगुने आकार का फल
फलो मे रह जाता है मीठा सा एक संस्मरण
ठीक उसी तरह
बनो तुम मेरे लिये कभी ज़ुबां की तमीज़
जिससे जब जी चाहे
बोला जा सके
बरता जा सके

जैसे मृत्यु में रह जाता है एक नीला ठण्डापन
ठण्डेपन मे रह जाती है एक दूधमुई ठिठुरन
ठिठुरन मे रह जाते है लिज़लिज़े काँपते होंठ
होंठो पर रह जाता एक टाला हुआ विद्रोह
ठीक उसी तरह
बनो कभी तुम मेरे लिये मेरी आखिरी साँस
जिसमे सिमटा जा सके
लुप्त हुआ जा सके

ओह!
मैं तन्द्रा मे थी ....