भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ज़राथुस्त्र / उज्ज्वल भट्टाचार्य

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:01, 18 नवम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उज्ज्वल भट्टाचार्य |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उस बूढ़े ने मुझसे कहा :
हाँ, तुम वही हो,
जो कभी इसी रास्ते से निकल पड़े थे
कहीं दूर जाने को

और फिर तुम कहीं खो गए
वापसी के रास्ते पर
देखता हूँ तुम्हें ।
तुम कितना बदल गए !

मैंने उससे कहा :
हाँ, मैं बदल गया,
क्योंकि
मैं वही हूँ,
जो कभी
रास्ते पर निकल पड़ा था ।