भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रेम / सुमित्रानंदन पंत
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:26, 21 नवम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मैंने
गुलाब की
मौन शोभा को देखा !
उससे विनती की
तुम अपनी
अनिमेष सुषमा को
शुभ्र गहराइयों का रहस्य
मेरे मन की आँखों में
खोलो !
मैं अवाक् रह गया !
वह सजीव प्रेम था !
मैंने सूँघा,
वह उन्मुक्त प्रेम था !
मेरा हृदय
असीम माधुर्य से भर गया !
मैंने
गुलाब को
ओंठों से लगाया !
उसका सौकुमार्य
शुभ्र अशरीरी प्रेम था !
मैं गुलाब की
अक्षय शोभा को
निहारता रह गया !