भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रेम नहीं मिलता है बाबू! / शिवम खेरवार
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:04, 29 नवम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिवम खेरवार |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
प्रेम नहीं मिलता है बाबू! नगर, गली, चौराहों में,
जीवन के सब पाप-पुण्य चुकता कर देने पड़ते हैं।
लंबी है यह 'कठिन' तपस्या,
पग-दो-पग का खेल नहीं है,
मित्र बनाए बिन कंटक को,
सुन! सुगंध से मेल नहीं है।
चाँद-सितारे अम्बर से, भू पर धर देने पड़ते हैं।
जीवन के सब पाप-पुण्य...
नभ से ऊँचे-ऊँचे वादे,
करने वाले लोग मिलेंगे,
वादों की अर्थी पर तुमको,
चोरी, करतब, भोग मिलेंगे।
मर्यादा, विश्वास, वचन के पेपर देने पड़ते हैं।
जीवन के सब पाप-पुण्य...