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प्रेम नहीं मिलता है बाबू! / शिवम खेरवार

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प्रेम नहीं मिलता है बाबू! नगर, गली, चौराहों में,
जीवन के सब पाप-पुण्य चुकता कर देने पड़ते हैं।

लंबी है यह 'कठिन' तपस्या,
पग-दो-पग का खेल नहीं है,
मित्र बनाए बिन कंटक को,
सुन! सुगंध से मेल नहीं है।

चाँद-सितारे अम्बर से, भू पर धर देने पड़ते हैं।
जीवन के सब पाप-पुण्य...

नभ से ऊँचे-ऊँचे वादे,
करने वाले लोग मिलेंगे,
वादों की अर्थी पर तुमको,
चोरी, करतब, भोग मिलेंगे।

मर्यादा, विश्वास, वचन के पेपर देने पड़ते हैं।
जीवन के सब पाप-पुण्य...