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हे अम्बर के लाल! / शिवम खेरवार
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हे अम्बर के लाल! तुम्हारा क्रोध हमें पिघला ही देगा।
निठुर मनुज की गतिविधियों से माना तुमको कष्ट हुआ है,
प्रकृति का हर हिस्सा थोड़ा-थोड़ा प्रतिदिन नष्ट हुआ है,
मूक प्राणियों के जीवन का थोड़ा ध्यान धरो तुम सूरज,
क्रोध तुम्हारा निर्दोषों को कारण बिना जला ही देगा।
हे अम्बर के लाल! ...
ताप तुम्हारा असहनीय है विनत भाव करबद्ध खड़े हैं,
सुबह दुपहरी साँझ नभचरों ने भी अनगिन युद्ध लड़े हैं,
बिन जल, छाया जीना दूभर, भली-भाँति परिचित हो प्रभु तुम!
देव! अग्निवर्षा को रोको, क्रोध हमें अकुला ही देगा।
हे अम्बर के लाल! ...