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अशांत का जन्मदिन / राजकिशोर सिंह

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नमन करो इस शब्द पुरुष को
जिसकी वर्षगांठ हमने मनाया है
अद्भुत शत्तिफ, समुंदर सा ध्ीरज
चेहरा जिसका मन को भाया है

दुबला-पतला सीघा-साध
पहली बार जब देऽी काया
अद्भुत शत्तिफ, समुंदर सा ध्ीरज
चेहरा जिसका मन को भाया है

दिल में सद्गुण मन में साहस
इनके होठों पे सत्यवाणी है
पौरुष प्रतिमा व प्रीति प्राण
इनकी यही कहानी है

नाम अशांत पर दिल में शांति
पिफर भी अशांत भोला है
प्रेम देने पर ये होते शबनम
घृणा पर तो शोला है


सादा जीवन उच्च विचार
ही इनकी आधर शिला है
मगर प्रेम प्रसंग काव्य में इनके
रंगीन पफूलों सा ऽिला है

पैर पजामा तन में मलबरी कुर्त्ता
के अद्भुत परिधन में
रौनकता लगती ऐसी इनकी
जैसा किसी जवान में

कविता लिऽना गोष्ठी करना
इनकी रत्तफ धरा है
नवसृजित कवियों का काव्य
इन्हें बहुत ही प्यारा है

साठ वर्षों की लेऽनी में
प्रेम प्रसंग की है उमंग
कलम इनकी ऐसी पिचकारी
देती जो बिना होली के रंग

मजदूर दिवस के शुभ अवसर पर
जनमा है एक साहित्यिक मजदूर
काव्य सेवा से हिन्दी माँ की
जिसने की है सेवा भरपूर।