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उगते देखा है / राजकिशोर सिंह
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सूरज को उगते देऽा है
सूरज को ढलते देऽा है
हर दोपहरी की बेला में
किरणों को मचलते देऽा है
दौलत आने पर इंसा के
ऽयालात बदलते देऽा है
जब सूरज माथे पर चढ़ता है
रिश्तों को मचलते देऽा है
अस्ताचल में होता तब सूरज
मित्रों को बदलते देऽा है
जब भूऽ का दानव जगता है
न दिल को पिघलते देऽा है
इंसा जब आगे बढ़ता है
अपनों को जलते देऽा है
दुश्मन जितना भी कोमल हो
उसको न पिघलते देऽा है
बेकार गुमां करते हो क्यों
हर गुमां को ढलते देऽा है
इतिहास बयां यह करता है
गिरते को संभलते देऽा है।