Last modified on 7 दिसम्बर 2019, at 18:48

समय को जाना नहीं / राजकिशोर सिंह

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:48, 7 दिसम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजकिशोर सिंह |अनुवादक= |संग्रह=श...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

चित्राकार ने बनायी एक बार
समय की एक मूरत
जो थी ऽूबसूरत
जिसके
माथे के पीछे था
बिल्कुल गंजा
और आगे
भरपूर घने बाल
किसी ने पूछा
इस चित्रा का
ऐसा क्यों हाल
उस पर
चित्राकार ने कहा
आपका
उचित है सवाल
यह है काल

जीवन में एक बार
जाता सबके द्वार
करता उससे गुहार
जो होता है माई का लाल
इन्हें पकड़ता है
सुविध से
वही घने बाल
और
भविष्य में करता कमाल
लेकिन
पकड़ने में जो अलसाता है
आजीवन हाथ मलता है
और
समय पीछे मुड़कर
तेजी से सरसराता है
तब भाग्यहीन को
गंजापन नसीब आता है
समय नहीं पकड़ता है
ऐसे आलसी को
वह आजीवन
असपफल रहता है
क्योंकि उसने
समय को जाना नहीं
समय को पहचाना नहीं।