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है घना कोहरा अंधेरी रात से / एस. मनोज

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ज़र्द होती ज़िंदगी ज़ज्बात से
है घना कोहरा अंधेरी रात से

मज़हबी पहरा सभी पे है यहां
नफरतें घटती नहीं नगमात से

मज़हबी मुद्दे सियासत के लिए
अलगू जुम्मन हैं परेशां घात से

जंग से जन्नत बनेगी जिंदगी
जंग को जीतेंगे हम उल्फात से

आओ छेड़ें विप्लवी उद्घोष अब
स्याह सत्ता नहीं मिटती बात से