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प्रेम / कीर्ति चौधरी

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तुमने हाथ पकड़कर कहा

तुम्हीं हो मेरे मित्र

तुम्हारे बग़ैर अधूरा हूँ मैं

क्या वह तुम्हारा प्रेम था ?


मैंने हाथ छुड़ाकर

मुँह फेर लिया

मेरी आँखों में आँसू थे

यह भी तो प्रेम था।