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इतनी सी ख़्वाहिश / स्मिता तिवारी बलिया

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मिट्टी हूँ मैं!
तुम बन जाओ बीज
और स्वयं को बो दो...
मेरे अंदर,
पूरे मनोयोग से।
एक दृढ़ संकल्प लेकर।
फिर मेरे और तुम्हारे संयोग से,
अंकुरित होकर
जन्म लेगा एक नन्हा पौधा-
जिसे हम सींचेंगे....
दया,प्रेम,करुणा,
सभ्यता,संस्कृति और संस्कार से।
क्योंकि-
बौद्धिकता के आगे ये चीजें,
नगण्य होती जा रहीं..
और निरंतर अग्रसर हैं
विलुप्तीकरण के कगार पर।