भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नभ मंडल / लता सिन्हा ‘ज्योतिर्मय’

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:48, 17 दिसम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लता सिन्हा 'ज्योतिर्मय' |अनुवादक= |...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नभ मंडल के विस्तृत आँगन
श्वेत-श्याम घन मचल रहे
उमड़ घुमड़ आकार बदल
नृत्य-पटल-तल फिसल रहे

थिरक रही नव बूँद सृजित
नभ दामिनी स्वर झंकार किए
मृदंग ताल घन गरज-गरज
जल गगरी भर मनुहार किए

छलक-छलक जल बूँद गिरे
तरु पल्लवी सरगम छेड़ रही
फिर टपक-टपक बन बूँद झरी
इठलाती मृदु-जल फेर रही

श्वेत परत जल-घंघरी पहने
फुटक-फुटक करती नर्तन
बन फुहार कण खो जाती
अनवरत करती रहती कीर्तन

अर्द्ध-वृत आकार ले रही
इन्द्रधनुष की अंगराई
सतरंगी रितु छतरी ताने
नृत्य देखने स्वयं आई

रुन्नुक-झुन्नक करती जल पर
झींसी-झींसी बौछार विकल
रिमझिम वर्षा मोह गई मन
मयूरी के भए प्यार सफल...