भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रेम कविता / अनूप सेठी

Kavita Kosh से
Lina jain (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 00:53, 26 अगस्त 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनूप सेठी }} 1. डयूटियां बहुत बजा लीं गृहस्थी और तुनक मि...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

1.

डयूटियां बहुत बजा लीं

गृहस्थी और तुनक मिजाजी चलती रहेगी

मौसम की तरह आओ बैठो

दोस्ती के दिनों की तरह

जरा देर और

फिर एक-एक कप चाय के साथ और

फिर किताबों की बात

फिर कविता की बात

फिर संगीत का साथ


भरी बरसात

पानी से ऊब चूब बादल

अब बरसे तब बरसे

भिगो जाएं धरती आकाश


2.


आंखें बड़ी बड़ी

बहुत पास

दंत पंक्ति उनसे भी बड़ी

पूर्ण स्मित हास

इतनी दूर से

इतने पास

गर्मजोशी सब कुछ बांट लेने की

सलेटी बादलों में उजास


इस खिड़की को खुला रहने दो

झमाझम बारिश है

बेखबर लहराती

समुद्री हवा अनायास


(1996)